अपना अवलोकन करते रहना है , कही अभिनय तो नही हो रहा , अध्यात्म -भक्ति-प्रेम का ।
क्या वास्तव में हम पथिक सत्यपथ  के अथवा केवल टहलते-टहलते आये पथ के बाहर खड़े दर्शक ।
लगता तो है पथिक ही नही , पहुँच चुके ही है ।
अगर आत्म अवलोकन हो तो सत्य छिपेगा नही ।
सत्य कहे तुम पथिक नहीँ , बस जानकारियां एकत्र कर रहे हो । धर्म

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