मेहँदी के तिनको पर , तृषित , शायरियां

मेहँदी के तिनको पर चाँद उगा कर देखा
गिली मिट्टी में लिपटा सागर में डूबा सूरज देखा
फूलों की पलकों पर झुकता फीका आसमां देखा
झरने समेटे आँखों में सुर्ख़ अधरों को तृषित होते देखा

***
अँधेरे में शर्माता चाँद किसी की गोद से जा लिपटा
वो आँचल आज भी सूरज में चाँद खोजता है
***

मेरे लिबास से टपकता आज वो बूँद बूँद सा
उसने तो सुबकने की जगह ढूंढ ही ली

***
कागज़ की प्यास बुझाने की सोची थी
हमें क्या पता यें उसकी ख़ुदकुशी का बहाना था

***
दिल के फूल रो रहे थे ठण्डे सवेरो में
और ज़माने ने उनकी तस्वीर उतार ली

***
चाँद को देखने में वो डूब ही गई थी
हजारों तारे उसकी ईबादत कर कब चले गए पता नहीँ
अब उजाले के चाँद में उसकी मुस्कुराहट टटोल रही है

***
उसकी निगाह नहीँ बदलती
कमबख्त चाँद ही बदल जाता है
जब तलक उसे सूरज की तपिश भाने लगती है
डूबते सूरज में मुस्कुराता चाँद लौट आता है
वो खड़ी है काँटों की डाल पर फूल सी
दिन के उजालों में भी चाँदनी का साया फूलों पर छुट जाता है

***
साँवली सी रात को
थोड़ी सी धुप शहद में भिगो कर गुलाबों की बर्फ पर समेट कर
उसे लिपटाई ही थी
कि ...
तुमने उस दुपट्टे को चाँदनी कह दिया

अल्फ़ाज़ों के मोगरे से इस तरह
किसी प्रेम-सेज और छुपा ली

***

कागज को चुभती थी कलम की निगाहें
फिर भी उसने हर अल्फाज़ को खुद पर खुदवा लिया

अल्फ़ाज़ जो उनके गुलाब टपकाते थे
उसकी ख़ुशबूं से मेरी माटी आज भी
चाहत बारिश में अपना वज़ूद भूल जाती है
रेत में दबी ख़ुशबूं का परदा बारिश की बूँदो की घड़ी में बन्द था

काश एक सदी उनकी क़लम से टपकता अल्फाज़ हो जाता
फिर जब-जब वो ख़त पढ़ती
बार-बार वो अल्फाज़ गुलाबी हो जाता 

उन दोनों के होंठो पर आता कोई नाम हो जाता

***

गज़ब है मुझे क्या स्याही का समन्दर तुमने दिया था
बरस तो हो गए अल्फाज़ रूकते क्यों नहीँ
***

बर्फीली ठण्डी कस्तूरी निगाह से वो देखते है यूँ
गर्म ज़माना खुद-ब-खुद चप्पलों संग उतर जाता है

****
कमल के बीच शहद के सरोवर में तैरती चन्दन की नाव पर

केसर के धागों से तारों को सिल कर बनाई कालिन पर

चाँद के पँखे को झलते हुये उन दोनों की आँखों की गुफ़्तगू में

इश्क़ के बादलों से झुकी पलकों से कभी-कभी "उन्हें" निहारने का दिल करता है

"उन्हें" और उन दोनों अर्थात् प्रियालाल
इस भावना को भीतर अनुभूत कर के देखिये कल्पना फिर कल्पना नही दिव्य सत्य नज़र आएगी ।

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