युगल की व्याकुलता पी जाओ ,trishit
उन्हें परस्पर निकट निहारो अत्यंतम निकट इस भाव से उनकी निकटता की भावना को प्रबल करते करते आपको उनका प्रेम रस अनुभूत होगा । उसमें स्वयं को सखी जु की सेविका , यानी युगल की रस सहचरी ही जान ।
[10/12, 4:15 PM] सत्यजीत तृषित: उनकी प्रीत में सहयोगी होने पर वह प्रकट होगी , मन युगल की व्याकुलता को पीने को बावरां हो जावें कि मैं दोनों की व्याकुलता पी जाऊँ और वह परस्पर समा जावें ।
फिर भाव गहराए और दर्शन गहराता रहे ...
[10/12, 4:20 PM] सत्यजीत तृषित: हम उनके रस को पीना चाहते और व्याकुल रहते । हम उनकी व्याकुलता को पीने की भावना करें। परस्पर सभी विघ्न को स्वयं में समा लेने की भावना ।
इस तरह की भावना से युगल रस सामने होगा और तत्क्षण रस नही उनकी व्याकुलता और कष्ट निवारण के भाव से वहाँ स्वयं को सेविका रूप पा सकोगे ।
रस नही उनकी वेदना पी जाइये । जितनी वेदना पी सकें उतना गूढ़ मिलन उद्घाटित होगा और इस अथाह व्याकुलता के सरोवर की एक एक बूँद महाज्वलन्तम और गहनतम है अतः न व्याकुलता का पान पूरा होगा न ही गूढ़ रस से तृप्ति
[10/12, 4:27 PM] सत्यजीत तृषित: रसिकों के भाव सिद्ध है
[10/12, 4:27 PM] सत्यजीत तृषित: कही न कही उसके प्रमाण मिलते है और मिलेगे ।
[10/12, 4:27 PM] सत्यजीत तृषित: लगता है यह तो मेरे संग ही हुआ
[10/12, 4:27 PM] सत्यजीत तृषित: बस कोई लिख कह पाता है कोई नही । जो लिखता है वह प्रमाण है कि यह सब संग होता ही है , कुछ कुछ भाव वैचित्री संग ।
[10/12, 4:30 PM] सत्यजीत तृषित: हम एक दर्शन में भी अपने भाव अनुरूप जो विचित्रता पाते है , वह वैचित्री है
सब को एक ही दर्शन दिखाई दे तो अनुभूति में जो विभिन्नता है वह वास्तविक स्वभाव की विचित्रता से है और वह विचित्रता ही सेवा में नवीन रस लाती है , सब एक से हो तो नवीनता कैसे होगी । भाव रूपी विचित्रता से ही रस युगल हेतु गहराता है ।
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