राधा दास्य की बलवती लालसा , तृषित
राधा दासी बनने के लिये बलवती लालसा हृदय में जगनी चाहिये । गाढ़ी लालसा ही रागभजन की प्राण वस्तु है । तीव्र उत्कंठा के बिना राग भजन का माधुर्य समझ में नही आता है । जैसे विषयी कामी व्यक्ति विषय प्राप्ति के लिये छटपटाता है वैसे रागमार्गी भक्तों को इष्ट प्राप्ति के लिये छटपटाना चाहिये ।
निरन्तर चित् में यह बात रहें मुझे अभीष्ट की सेवा कब मिलेगी ?
इसलिये अरे मन ! सभी महत चेष्टाएँ दूर कर प्रणय के साथ चल श्री वृन्दावन में प्रेम प्रदान/ दासीत्व देने वाली एक राधा नाम की दिव्य निधि है । तुम शुद्ध प्रेमी भक्त हो , तुम्हारा उद्देश्य राधा दास्य प्राप्ति है । श्री राधारानी उसी प्रेम की अधिष्ठात्री देवी है - स्वयं प्रेमलक्ष्मी है । जिनके दर्शन मात्र से ही बिना साधना के व्रजप्रेम प्राप्त हो जाएगा । वृन्दावन वास करती हुये गुरू प्रदत्त स्वरूप का चिंतन करते हुए बरसाना , रास्स्थली आदि लीला स्थलियों में रोते हुए झाड़ू सेवा करते हुए और मन में नाम जाप करते हुए उनकी चरण रज के कुछ कण छिटक कर तुम पर गिर जायेंगे , तुम्हारा मन स्थिर हो जायेगा और अनायास ही तुम को राधदास्य अवश्य मिल जाएगा । .. जयजय श्यामाश्याम ।
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