त्रिगुण और राधा

श्री राधा गुणातीता है ... सो शब्दातीता भी |
शब्द के गुण और दोष होते है
सो राधा आद्यशक्ति का निर्गुणात्मक स्वरुप है |
राधा उपासको में भी निर्गुण भाव होना जरुरी है |
ना कोई आसक्ति , ना विकार सात्विकता मिल
जाती है निर्गुणता नहीं | सतो गुणी नहीं है
राधा जी ... हाँ निर्गुणात्मक प्रेम की साक्षात्
विग्रहा है | सो केवल सात्विक वृति से राधा पद
अनुराग ना होगा | आपके मुंह में तामसिक
जर्दा हो ... मुख से सात्विक भी नहीं निर्गुण
राधा हो तो राधाभाव आप समझे नहीं |
तामस छुटे ना तो तंत्रशक्तियों को ध्याया
जा सकता है | राधा कहने का नहीं जीने का
विषय है | प्रकृति के महाकरुणत्व
का साकार स्वरुप है राधा |
बिन करुणा प्रकृति असहज है ,
करुणा हटा दि जाये तो उत्पत्ति
कैसे होगी | पुरुष से अप्राकृत महा मिलन
के उपरान्त प्रकृति में
घटी करुणा को जीवंत देखे |
माँ में करुणा होती है अपनी सृष्टि
हेतु ... राधानुरागियों में हंगामा होना भी असहज सा है ...
उन्हें भीतर राधा तत्व को सजीव कर 
कृष्ण सुख का ही अंगीकार
करना आना चाहिये | जहाँ आनन्द की भी
कामना हो वहाँ सत गुण ही
होगा ... निर्गुण नहीं | राधा का अनुसरण
और दर्शन अलग विषय है |
राधा जु तो लीलाओं में अपने सुख
को चाह ही नहीं रही | ... कृष्ण सुख केवल |
यहीं भाव प्रेमियों में हो जीवन भर ...
आत्मा का राधात्व कर करुणा में बह कर
केवल कृष्ण-सुख | अर्थात् ईश्वर सुख
यहाँ आप सुख भी अनुभुत किये तो वो आपका
हुआ | कृष्ण हेतु फल आसक्ति का त्याग |
निकुंज में युगल राधाकृष्ण निर्गुण भाव से ही है ...
कार्य ,क्रिया ,उपादान राधा जी के भाव नहीं वहाँ
सब हो कर नहीं हो रहा ... केवल ब्रह्म रस  ले रहे है |
ब्रह्म के रस में ही अगर राधा हँसी हो तो राधा हँसेगी
पर केवल कृष्ण हेतु | अपने हेतु नहीं | यहीं करुणा है ...
करुणा आपको ईश्वर से जोडती है ... उनकी कामना
उनकी चाह करुणा से आपको ज्ञात हो जायेगी |
वहाँ लेश मात्र आपका सुख नहीं होगा |
प्रेमियों में केवल करुणा हो ... महा करुणा |
द्वेष भी नहीं | परन्तु राधा सब कहते है समझते
नहीं ... जब तक राधा समझ आने लगती है ,
बडी देर हो जाती है | राधा को समझने से पहले
सत रज तम को समझे फिर त्रिगुणों से ऊपर उठ
जायें ... सात्विकता से भी वही राधा है ...
सोने की ,लोहे की ,चांदी की जंजीर हो | जंजीर
बंधन ही है ... धातुओं में ना उलझे ... मुक्त होना
फिर ब्रह्म यानी कृष्ण सुख को जीवंत करना ही
राधा है | भौतिक दुखडे कहने के लिये बहुत द्वार
है यहाँ आत्मा को सजीव कर प्रकृति के मर्म को
समझ ब्रह्म की सिद्धि का निर्वहन मात्र करना है |
प्रकृति में ध्यान लगायें गुणातीत तत्व समझ आयेगा
फिर राधा पद चरण में समर्पित हो जायें ...

त्रिगुणात्म शक्ति
सत् रज तम | नाम से हम परिचित ही है
पर रहस्य से नहीं ...
सत रज तम स्वरुप हमारे उद्देश्य निवृति
हेतु ही होता है ... वरन् ईश्वर निर्गुणात्मक
ही पुर्ण है |
महाकाली तामसिक है हमारे रक्षण को |
तामसिक विकारों के लिये महाकाली की
शरण आवश्यक है | तामसिक विकार ना
हो यें सहज नहीं | शरीर में हीसत रज तम
व्याप्त है | अहंकार - द्वेष - क्रोध तमोगुणी है |
शरीर की विष्टा तमोगुणी है ... तम विकार को
तामस से ही निवृति मिलती है | आप सात्विक
हो सकते है कह सकते है तमोगुण स्वरुप को नमन
ना ही करुं परन्तु निर्विकल्प आद्यशक्ति जिसका
मूल स्वरुप निराकार प्रकृति ही है वह तामसिक हुई
है तो जगत्-हेतु | संहार हेतु | माँ अपनी ही सन्तान
का सहज सम्भव नहीं | माँ को तामसिक होना ही होगा |
विकार दैत्य भी उन्हीं की सृष्टी है ...
जैसे  शरीर की विष्टा और मन में
विकार जिसके त्याग के लिये तमस
होना ही होता है | सो भेद मिटा दें ...
माँ का अपने ही पुत्र का पर दणड
स्वरुप हाथ उठाने में जो शक्ति
निहित है उसका ही भीष्म रुप काली है |
काली भक्त क्रोधी हो सकते है पर यहाँ
तो राधा भक्त भी क्रोधी मिलते है | वहाँ
बोध ना होना ही भाव है ... वो व्यक्ति
तामसिक ही है |

महालक्ष्मी राजसिक शक्ति है हमारे प्रसार विस्तार को |
जब तक शरीर में विष्टा है तमोगुण है | जब तक
रक्त है रजोगुण है | यही रजोगुण शुद्ध होकर विर्य
होगा | जब तक कामना है काम है चाह है संकल्प है
रजोत्मक ही वृति है सात्विक नहीं | यहाँ महामाया
महालक्ष्मी का ही स्वरुप है वहीं भक्ति स्वरुपा है |
प्रसारण- व्याप्त का जो भी कार्य है इनका है |
माँ बनने पर अपने ही शरीर में पुत्र के लिये
पोषण की व्यवस्था यानी दुध में लक्ष्मी शक्ति निहित
है | प्रकृति भी स्वयं को पोषित कर जीवन हेतु पोषण
तैयार करती है | भौतिकता का निर्वहन यहीं से होता है |
रक्त की उपादयत्ता जितनी है वही रज गुण की | रक्त बिन
रहा जा सकता तो रजोगुण बिन भी ...

सात्विक
महा सरस्वति सात्विक शक्ति है | सात्विकता  , धर्म-परायणता ,
नैतिकता , सतो गुण है | भक्ति सात्विकता से ही शुरु होती है |
ज्ञान और कला भी सात्विकता से ही तमो गुण तक या निर्गुण तक
जाती है | विद्या तत्व सत गुण के निहित है | संतों में महापुरुषों में
सतगुण प्रधानता होती ही है ...
केवल कृपा से ही सत गुण निर्गुण हो सकता है |

सीता माँ लक्ष्मी स्वरुप है पर सात्विक और निर्गुण दोनों है |
नील सरस्वति और महाविद्यायें - सत रज तम तीनों के अनुरुप
प्रभावी होती है |
किसी भी स्वरुप में आप आरधना करें आराध्या की
परन्तु समता का भाव हो ... श्रेष्ठता का नहीं |
आद्यशक्ति का कोई भी स्वरुप हो | है प्रकृति हेतु |
जीवन हेतु | राधा प्रेमियों में सद्भाव ना हो और
तांत्रिक में हो तो वो तांत्रिक ही श्रेष्ठ है | अत: वैचारिक
बंधे नहीं खुलें | नमन करने मात्र से आपका प्रेम नहीं चला
जाता | वरन् आप अन्यत्र प्रेम के हेतु विकारों से सुरक्षा का
आवरण चाह सकते है ... राधा स्वयं विनम्र की पराकाष्ठा से
परे है |
स्वामी विवेकानन्द से सौम्य काली भक्त हुये है |

राधा प्रेमियों सजीव सौम्यता आवश्यक है | तीनों गुणों का
जीवंत छुट जाना ही राधा का हो पाना है | चाह रही तो तीन में
से कोई एक पथ है आपका राधा के पथ में चाह है ही नहीं | सत्यजीत
"तृषित" !!! विस्तार से कभी आपके प्रत्यक्ष दर्शन होने पर !!!

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