मौन का सुनना
राधे राधे
अक्सर नेत्रहीन मधुरतम संगीतज्ञ
होते है | जन्मान्ध के हाव भाव भी
कुछ अलग होते है ... जैसे बालपन छुटा ही ना हो ... बनावट
देखी नहीं सो सिखें नहीं ...
स्वर मधुर होता है क्योंकि
कानों को आँख कर लिया |
गहरा सुनने लगे ... कान ही उनके
नेत्र है ...
सुनना ही संगीत है ...
गाना नहीं ! जो गा रहा है , वो
भी सुन ही रहा है ... कही का
अनहद !
नेत्रहीन गहरा सुनते है सो
गा पाते है |
हम नहीं सुनना चाहते , कहते
कहते को रोक सकते है , सुन
नहीं सकते ...
पहले जो कहा वो सुनना सीखे
फिर जो कहना चाहा पर कहा
नहीं गया वो सुनना सीखें ...
फिर मौन को सुनना सीखें ...
यहाँ से संवाद होगा प्रभु से ...
उनके मन की सुनना आया
तो समझ आयेगा कि घण्टियाँ
तो लाखों बजा कर चले
गये मन्दिरों से , पर
इनकी किसी किसी ने ही
सुनी ... इन्हें कुछ कहना ना
होता तो इतना स्वर संसार ना
रचते ...
इनकी कृतियाँ सजीव ना होती.
पुष्पों को देखों ... तोडने से पुर्व
लगेगा जैसे उसे कुछ कहना है ...
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