Ganesh tatv
प्रभु जिन्हें मानकर जानना बडा सरल है |
परन्तु कामना-तृष्णा चाह ईश्वर से दूर ले
जाती है |
चिंतन - मनन आपको शब्दों के अर्थ में
नहला लाता है | शब्द ना हो जहाँ वहाँ
भी अर्थ निकल आता है | कुछ खण्डों
में सब कहना चाह रहा हूँ | भीतर सब
उफनता है पर बाहर नहीं आ पाता |
सारे भाव कहने का कारण है भाव
के अधिग्रहण के अहंकारात्मक दोष से
बच कर श्री जु चरण सेवा में मन का होना |
शब्दात् सृष्टी जायते ... अत: वचनों का
सनातन धर्म में गम्भीर स्वरुप है | आपके
असत्य को सत्य में परावर्तित करने हेतु
तथास्तु का परमात्मा का भाव है ...
अत: चित् विशुद्ध हो अनिवार्य है ...
श्री हनुमत् प्रेरणा और श्री जु चरणकृपा से
... राधे राधे !!
गणेश ! बुद्धि में व्याप्त तत्व | प्रसार तत्व में
सदा श्री शक्ति है | श्री शक्ति को विद्या करना
सरस्वति तत्व है | गणेश लक्ष्मी सरस्वति कृपा
से ही प्रसार सम्भव है ... यहाँ दो राजसिक और
एक सात्विक तत्व है | गणेश राजस है परन्तु
उनमें पुन: प्राणोदय शिव के सात्विक तत्व से
हुआ है | सत्-रज गुणात्मक गणेश को स्मरण
ना करने पर भी वैचारिक उत्पति में वहीं संलग्न
है | गणपति सेवा से सतोगुणी और रजोगुणी
सब कार्य सिद्ध होते है | गणेश में पुरुष का
सत और प्रकृति का रजो गुण है |
यहाँ प्रकृति स्वरुपा पार्वति ने स्वत: गणपति उत्पन्न किये |
जबकि प्रकृति को पुरुष के बीज ग्रहण का प्रावधान है |
अत: शिव लीला से यहाँ शिश खंडन हुआ और
सत तत्व में प्राण रोपण हुआ | लक्ष्मी गणपति को अपना
पुत्र ही मानती है ... पार्वति ने उबटन से यहाँ निर्माण किया |
जहाँ त्रिगुणात्म शक्ति का रज गुण श्री ही प्रवाहित है |
गणेश वंदन आवश्यक है भले मानसिक हो | बुद्धि हीन तत्व
में आवश्यक नहीं | बहुत से भक्त अपने इष्ट को ही सीधा कहते
है परन्तु यहाँ शिव कृपा बिन कुछ करुणा हो ही नहीं सकते सो
शिव बीज स्वरुप प्रकृति पुरुष के पार्षद भाव से भी गणेश को
कहना ही चाहिये | गणपति पर विस्तार से चर्चा करेंगे |
ॐ वक्रतुण्डाय हुम् |
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