हनुमान विवाह का खंडन

“हनुमान् जी के विवाह की चर्चा अप्रामाणिक”

यह पराशर संहिता अर्वाचीन ग्रन्थ है । हमारे यहाँ हनुमान् जी के विषय में सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ वेद और
आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण है । जिससे हनुमान् जी के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है ।

अथर्वणशीर्ष जिसे अथर्ववेद का परिशिष्ट अंश सभी वैदिक विद्वान् मानते हैं । उसके “सप्तमुखी हनुमत्कवच” में “ब्रह्मचर्याश्रमिणे” शब्द से हनुमान् जी को ब्रह्मचर्याश्रम में स्थित बतलाया गया है । जो सपत्नीक होगा उसे
ब्रह्मचर्याश्रम में कोई विज्ञ नहीं कह सकता है; क्योंकि यह आश्रम विवाह होने के पूर्व में ही माना गया है ।
विवाहोपरान्त व्यक्ति गृहस्थाश्रम में माना जाता है -यही शास्त्रीय सिद्धान्त है । अतः वेदविरुद्ध अंश में पराशरसंहिता
का प्रामाण्य स्वीकार्य नहीं .

१-यह संहिता परस्पर विरुद्ध बातें कहती है -इसलिए भी यह प्रामाणिक ग्रन्थ नहीं है ।

२-इस संहिता में अन्य ग्रन्थों के अधिक से अधिक भागों को लिया गया है । जैसे-

७४वें पटल में ३०वें श्लोक से ४८वें श्लोक तक कवच आनन्द रामायण के एकमुखी कवच की नक़ल हैं ।

८५वें पटल में सभी मन्त्र सुदर्शन संहिता के हैं -इस तथ्य को मुम्बई से प्रकाशित “हनुमदुपासना पुस्तक” से
कोई भी जान सकता है ।

८८वें पटल में हनुमत्सहस्रनाम है वह भी रुद्रयामल तन्त्र का है ।

९३ पटल का सम्पूर्ण हनुमत्कवच आनन्दरामायण का है ।

पराशरसंहिताकार ने तो हनुमान् जी को ११९वें पटल में पिशाच बना दिया है । जबकि वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड
के अनुसार हनुमान् जी चिरंजीवी हैं । ७ चिरंजीवियों में “हनूमांश्च विभीशणः।” से हनुमान् जी का ग्रहण है ।

क्या हनुमान् शरीर से रामकथा के प्रचार प्रसार तक रहते हनुमान् जी पिशाच बन सकते हैं ? -इससे कुत्सित कल्पना
दूसरी और क्या हो सकती है ?

पराशरसंहिता में लिखा है कि हनुमान् जी सुवर्चला के स्तन पर हाथ रखे हुए हैं । ये कैसा ब्रह्मचर्य है ?
पराशरसंहिताकार की दृष्टि से ।

सूर्य की पुत्री तपती की चर्चा पुराणों में है किन्तु सुवर्चला की चर्चा पराशरसंहिता से अन्यत्र क्यों नहीं ?

दक्षिण भारत में मामा की लड़की से शादी के लिए ५-६- साल तक प्रतीक्षा करनी पड़े तो दाक्षिणात्य प्रसन्न हो जाता
है । कुमारिल भट्ट जैसे महामीमांसक लिखते हैं कि मामा की लड़की से विवाह करके दाक्षिणात्य प्रसन्न हो जाता है-

” मातुलस्य सुतामूढ्वा दाक्षिणात्यः प्रहृष्यति ।” .

दाक्षिणात्य तो भगवान् के मोहिनी अवतार से शिव जी द्वारा एक पुत्र की उत्पत्ति की कल्पना करके मन्दिर बना बैठे
हैं जिसे “अयप्पा” कहते हैं । यह भी भागवत आदि पुराणों से विरुद्ध है ।

पराशर संहिता एक अर्वाचीन ग्रन्थ है । वाल्मीकि रामायण के अनुसार सूर्य भगवान् ने हनुमान् जी को समस्त विद्यायें प्रदान करने का वरदान दिया है । फिर ये ४ विद्यायें कौन हैं जो सभी विद्याओं की परिधि में नहीं आतीं ?

सूर्यपुत्री सुवर्चला काल्पनिक है । सूर्यपुत्री केवल तपती ही हैं । हनुमान् जी को “ब्रह्मचर्याश्रमिणे” से ब्रह्मचर्य आश्रम में
स्थित कहा गया है । इससे विरुद्ध उनके विवाह की कल्पना और मन्दिर केवल अय्यप्पा या साईमन्दिर के समान है ।

दैनिक भास्कर जी आप या आपका बुद्धिजीवी कोई भी पत्रकार या आपसे सम्बन्धित कोई भी विद्वान् मेरे कोमेन्ट का उत्तर कर सकता है तो करे । आपकी पूरी पोस्ट प्रमाणविरुद्ध है ।

जय श्रीराम

#आचार्यसियारामदासनैयायिक
महाराज श्री के तथ्य के साथ में आपको यें भी बता दूं कि
हनुमान जी राम कार्य हेतु सत रज तम धारण कर सकते है |
जैसे जिसके भाव है वैसे दर्शन है वाल्मिकी जी व्याध (शिकारी) थे
बडी सरलता से वो हनुमान जी को विकराल घोषित कर दिये ...
वाल्मीकि सुन्दरकाण्ड में वाल्मीकि जी के दृष्टिकोण से हनुमान जी
राक्षसों को खा गये | बडी ही सरलता से बडा भयानक विकराल रुप
का चित्रण है ... जैसे हनुमान जी तामसिक हो | वाल्मिकि व्याध है
उनके लिये हिंसा सामान्य बात है | युद्ध के दृश्य को वाल्मिकी सरलता से
लिखते है ... जैसे आनन्द ही संग्राम में आ रहा हो ... बडा विस्तार से कहे है |
पाराशर जी गृह्य सुत्र के ऋषि है ... गृहस्थी के | उन्हें सब गृहस्थ ही प्रतित
हुये ! षोडश संस्कार में विवाह संस्कार है जो पाराशर जी के मत से अनिवार्य
ही है | अत: उन्हें हनुमान जी भी विवाहित दिखें ... अविवाहित उन्हें देखना ही
ना था | इस प्रकार यें हनुमान जी का राजसिक गुण उन्हें दिखा |
तुलसीदास जी को हनुमान जी सात्विक ही दिखें ... हमें भी उस भांति ही देखें
हमारे चित् में वहीं छवि बनती है सरलता से ... राम दूत - रामभक्त हनुमान |
हनुमान जी राम भक्त की छवि का साक्षात् चित्रण है | उनका आत्म एक भाव
निरन्तर राम नाम रस पीने में लगा है ... योग अवस्था में | वहीं बाहरी रुप से वें
राम काज हेतु सदा तत्पर है | प्रतिक्षण |
आज भी तंत्र में हनुमान जी को तामसिक मान पंच मुखी , एकादशमुखी मान
तांत्रिक तरिके से सेवा होती है | जो कि सात्विक - सामान्य - सरल जीव के
लिये सर्वथा निषेध है | हनुमान जी का सात्विक दर्शन ही करें ... सात्विक अर्चन
ही करें | प्रति भाव से सेवा की अपेक्षा नहीं होनी चाहिये | हनुमान जी राम जी के
परम् भक्त - सेवक है इसी तथ्य से उन्हें आंतरिक शांति मिलती है | अत: जिन
हनुमान जी का बचपन से हनुमान चालिसा में आप ध्यान करते रहे है | वहीं स्वरुप
सुन्दर भाव से पुजनीय है ... वहीं स्वरुप हनुमान जी को भी प्रिय है , वें रामसेवक
हो सर्वकाज साध देते है | राम जी तक कोई कष्ट ना पहुंचे यहीं उनका भाव है |
सत्यजीत "तृषित"

Comments

  1. बहुत ही सुन्दर व्याख्यान
    जय श्री सिताराम

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