अहंकार बिना

अहंकार ...
मानव बिना अहंकार के रह नहीं
सकता | कुछ उससे हुआ कि
अहंकार फुट पडेगा | पर
किताब पर बने पहले अक्षर
से भले महान विज्ञानी होने तक
जो कुछ भी व्यक्ति कृति करता है |
जैसे सैकडों मंज़िलें , इतने संसाधन ,
इतना संचार का संक्षिप्तिकरण कुछ
भी अहंकार से बना होता तो
टिकता नहीं , सफल होता नहीं ...
सुत्र गलत हो जाते | अहंकार होता
तो |
इसके लिये आपको किसी कलाकार
या कृतित्व व्यक्ति की मनोदशा 
समझनी होगी | चित्रकार जब चित्र
बना रहा हो ... मानो कुछ योग घट
रहा हो ... संगीत जब नये गीत सजा
रहा हो मानो परमात्मा जुडा हो ...
जितनी भी कृति , आपको दिखती है
यें सब सुक्ष्म शरीर से घटी है ...
चित्र - गीत या भवन ही हो इनमें
सुक्ष्म शरीर जुडा है प्रयास हेतु |
जब भी कुछ कृति का निर्माण होता
है उस क्षण अहंकार नही होता ...
अहंकार वहाँ महतत्व रुप में होता है
अहंकार का विलोम है महतत्व |
बुद्धि मन चित्त और अहंकार के
समायोजन से कृति हुई है ...
ना कि देह से ... देह से एक सुक्ष्म
सी अदृश्य आत्मा कही जाने वाली
चीज छुटे तो वही देह का प्रयास
समझ आयें ... चित्र अधुरा रह जायें
तो पीडा स्थुल शरीर को नहीं , सुक्ष्म
को होगी |
जितना भी निर्माण आपको दिखता
है अगर यें अहंकार से होता तो गिर
जाता | हाँ पहले और बाद रह सकता
तत्क्षण नहीं ... यह एक चमत्कार
है अनुभुत करियें तब तो निरपेक्ष जुडा है ... उस
क्षण जैसे अहंकार हटा वैसा सदा रहे यही दुर्लभ है ...
बिन समर्पण कुछ घटता ही नहीं ...
गीता में सब स्पष्ट है ...
यह व्यर्थ का विषय नहीं ... यह
माया को समझने का प्रयास है .
मानो जैसे किसी बच्चे के हाथ में
बैटरी का खिलौना हो और बार- बार
स्विच - ऑन ऑफ हो रहा हो ...

मुझे कोई मिठी आवाज मिलती है
तो लगता है कि ईश्वक ने इससे कुछ
सुनना चाहा है ... वो प्रयास ना करें
तो ईश्वरिय कृपा का अपमान है ...
वरन् किसी को नाहक कुछ नहीं मिलता
कोई नाचना जाने और नाचे ना तो
भीतर के परमात्मा कैसे नाचेंगें ...
कैसे स्वयं दृष्टा होगें | सभी अपने
सामर्थ्य से परिचित है ... कुछ विशेष
है तो सौंप दे उन्हें | ...
उनका क्या है और आपका क्या समझ
आने लगा तो अहंकार आपको खंडित नहीं
कर सकेगा | सत्यजीत तृषित

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