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Showing posts from March, 2017

त्रिगुण पाश से पहले वृन्दावन वास की योग्यता नही हमारी , तृषित

वृन्दावन वास की योग्यता नही हमारी , सन्त बहुत कहे है , त्रिगुण ने छुआ तो वृन्दावन प्रकट न होगा । लक्ष्मी जु लक्ष्मी हो कर प्रवेश नही करती । क्योंकि वह राजसिक स्वभाव की अधीश्व...

चरण ध्यान और द्वंद सँग नहीँ , तृषित

चरण ध्यान और द्वंद सँग नही सम्भव ... श्री प्रभु चरण का सहज स्मरण बन पाए तो वासना वहीँ नष्ट हो जावे । श्री श्यामसुन्दर के चरणों से ऊपर का ध्यान विकार चित्त नही कर सकता । समस्त उपा...

भजन की सरसता का वर्धन , तृषित

भजन की सरसता का वर्धन नाम भजन (सुमिरन) गहनतम अमृत है , भजन में स्थायी रसभाव वृद्धि होती है । भजन से स्वभाव स्वरूप का अनुभव होता है । भजन हमें अपनी वास्तविक स्थिति प्रदान करता ह...

रस मुक्तावलि

रस मुक्तावली प्रथमहि श्रीगुरु के चरन, उर धरि करों विचार। वैस वेष सखि भाव सों, अद्भुत रूप निहारि।। १।। एती मति मोपै कहाँ, सिंधु न सीप समाइ। रसिक अन्नयनि कृपा बल, जो कछु बरनयो ज...