भजन नहीँ हो पा रहा , तृषित
सम्पूर्ण आसक्त दुर्दशा में हम पत्थर कंकर इक्कठे करते करते जब वास्तविकता का दर्शन करते है तो वहाँ उलझन भी युगल सरकार को हृदय से सुख देती है ।
भजन (नाम रस) हीन स्थिति में वास्तविक रस संग सम्भव ही नहीँ ।
मुझसे भजन हो रहा यह अनुभव है अर्थात अभी भजन हुआ नहीँ ।
भजन होने पर एक लालसा ... एक उलझन ... सदा रह जाती है ... भजन नहीँ हो पा रहा ।
भजन नहीँ हो पा रहा ... यह पीड़ा गहनतम पीड़ा है , रस पथ की । और पीड़ा भी ऐसी की युगल को सुख देती है । निर्मल रसिक सदा कहते है ... भजन नहीँ हो पा रहा । अर्थात भजन साधन नहीँ ... भजन तो उस सुर की तरह है जो हम सा लगा कर पकड़ तो रहे है पर ठीक हाथ नहीँ आ रहा ... कभी आई थी इसी भजन में गहनतम रस स्थिति , अब नहीँ ... अतः ... वास्तव में ऐसे रस साधक आगे बढ़ रहे है , परन्तु यही तो कृपा है जो विज्ञान-ज्ञान से परे स्वयं को सदा अधूरा पा कर व्याकुलता को सींचती रहती है ... जैसे श्री प्यारे जु की रस-रँग दायिनी रँगिली जु कहती है कि दर्शन के भी योग्य नहीँ हूँ ... यह स्थिति बनावटी नहीँ ... सत्य में वे मानती है इतना अभाव ... भाव-महाभाव की प्रकट जननी है वें परन्तु अभाव की स्थिति उस महाभाव में ... भाव का एक अणु का कभी हुआ स्पर्श सिद्ध होने की घोषणा करना चाहता है तो महाभाव सार भुता माधुर्य सुधा निधि प्रिया जु का द्रविभूत हृदय कितनी निर्मल प्रीति पुलकन से कहता है अपने ही हिय के मुक्तामणि के प्रति अपनी असमर्थता को ।
... भजन नहीँ हो रहा ... यह बनावट नहीँ , 24 घण्टे भजन करने पर हृदय कहे तो मानियेगा , भजन प्राणों से प्रिय वहाँ ... हमसे भजन होता तो रोते अभी , यूँ लिखते कैसे ... और ऐसी दिव्य स्थिति प्राप्त रसिक कभी यह पोस्ट पढेंगे ही नहीँ , क्योंकि ... वे तो पुकारते पुकारते रो रहे है ... भजन क्यों नही हो रहा ... भजन बन नहीँ पा रहा । हे प्रभु भजन क्यों नही हो पा रहा , हे स्वामिनी , भजन ना बन पा रह्यो ... हे राधे ... युगल नाम न पुकार सकूँ ऐसो का पाप कर डालो ...
तृषित
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