आत्म विश्राम से लीला राज्य प्रवेश , तृषित

आत्म विश्राम से लीला रस प्रवेश सम्भव ...

विश्राम की भी एक अवस्था है । जीवात्मा पहले  विश्राम प्राप्ति करें ... विश्राम ही चेतना खोज रही है । देह का विश्राम होता है , मन का भी सम्भव  , चेतना भी विश्राम चाहती है ।
विश्राम शुन्य चेतना कैसे रस में प्रवेश करेगी । यह बात सहज समझ भले न आये परन्तु यही होना है ...
पहले क्रिया शुन्य चेतना विश्राम प्राप्त करे । भागवत का गुढ अध्ययन आत्म विश्राम के भाव को स्पष्ट करता है ।
विश्राम की भी एक अवस्था है ... वह भी पूर्ण होता है । चेतना के विश्राम की पूर्णता पर लीलाराज्य में प्रवेश होता है । यह लीला राज्य विश्राम का विरोधी नहीँ है ... आत्म विश्राम के परिणाम का फल लीला राज्य है । अब हम जीव तो देह के विश्राम को भी व्यवस्थित नहीँ कर पाते । चेतना के विश्राम तक कैसे जाएं , चेतना के विश्राम की पूर्णता लीला राज्य है । सबको लगता है मैं रस या भाव को बखान करता हूँ ... ध्यान दीजिये , मैं उनकी महिमा और अपनी लघुता का ही उद्घाटन करता रहा हूँ ...करता रहूंगा !
सत्य में निकुंज कल्पना नहीँ , उसे आज क्रिएट कर रहे बहुत से साधक मानस पटल पर । भगवत नाम आश्रय से और सहज कृपा से जानिये आत्मा का विश्राम क्या है । आत्मा के विश्राम की पूर्णता स्वतः आपको भाव रूप नेत्र सँग जागृत करेगी । जीवात्मा एक बार पथ को मनुष्य रहते पूर्ण कर भाव पथ को अनुभूत कर सकता है ... तृषित ।

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