साँची प्रीत तू ही जाने ... तृषित
साँची प्रीत तू ही जाने ...
कबहुँ सिमरुं , कबहुँ रोऊँ , नाचूँ - गाऊँ , सबसे बतियाऊँ ...
जब हि देखूँ तोहे .. मोहे निरत निरखत ही पाऊँ ...
मौन का मुस्काबे , प्रीत प्रीत अलाप मोरे , तोरी सुन कबहूँ यूँ मुस्काऊँ ...
प्रीत साँची एकहुँ तेरी प्यारे , मोरे कबहूँ न बदले प्राण दुलारे ...
-- तृषित
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