मुलाक़ात

मुलाक़ात

अब  किसे  सुनाये  हम  कि  हम  मिले  या  नहीँ
तुम  कुछ  कहते  नहीँ  हम  कभी  ठहरते  ही  नहीँ

मुलाकातों  की  तो  हद  कर  देते  हो  तुम 
जहाँ  कल  खड़े  थे  वहीं  आज  खड़े  मिलते  हो  तुम

जिनसे  ना  मिलने  की  शिक़ायत  सारा  जहाँ  करता  है
निग़ाहों  में  मोहब्बत  हो  तो  वहीँ  तो  इन्तज़ार  करता  मिलता  है

जिसके  इन्तज़ारी  शरारती  शर्मीले  कदमों  में  सज़दा  मिन्नतें  तो  करते  हो
उसकी  निगाहों  में ठहरी मोहब्बत  को फ़साना ही  समझते  हो

मुलाक़ातों  की  भी रस्में रिवाज़  होते  है
जिसे  मिलना  हो  उसके  ख़्याल  दिल  में  भरने  होते है

हो  जाऊँ  उनसा  ऐसा  आसाँ  मेरी  ओर  से  तो  ना  था
नज़ाक़त - मोहब्बत - शरारत  भरा पाक  पैमाना मैं  ना था

वही  हबीब  मेरी  ओर  की  मोहब्बत  जी  कर  निकला
हम  पत्थर  ना  ठहरें  तो  मख़मली  महकता चाँद  ठहरा  सा  निकला

तुम  सा  होना  आसाँ  ना  था  यह  कहते  कहते तारों  सँग  रात तलाश  डाली
कही  ठहरना  उसकी  फ़ितरत  ना था  फिर  भी  ख़ुद  की  तस्वीर  बना  डाली

हम  तो  मिट्टी की  दुनियां  में  हो  सकते  तो  संगेमरमर  से  कुछ  दिल  थे
फूलों  को  तासीरे फ़िरदौस  देने  वाले  ने  पत्थरों  से  मुलाक़ात  क़बूल  कर  डाली

उसकी  हक़ीक़ते सरसर  महकती  लहराती  चाँदनी  बिखेरती निगाहों  में  डूबना आसाँ  ना  था
नज़ाक़त  शरारत  रोज की नई मुलाक़ात  समेट  मूरत  उसने  तौफे  में  दे  डाली

उन से  आती महकती  मुलायम  झंकार उनकी  पुकार  लेकर  आती  रहती यहाँ  तक
मिट्टी  की  दुनियां  में  और  तुझे शायद  ठहरना  था तृषित ... बहकती  सदायें  तो  यही पैगाम  लाती  ... आओगें  कब  तक ...

अब  हम  ना  आएं  मधुर  महकती  इश्क़  की  केशर  क्यारियों  में
वही  बरसों  से  क्या  खड़ा  नहीँ  तुझे  देखने  ठहरी  सी  मुस्कुराहट  में ...
** तृषित **

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