चरण ध्यान और द्वंद सँग नहीँ , तृषित

चरण ध्यान और द्वंद सँग नही सम्भव ...

श्री प्रभु चरण का सहज स्मरण बन पाए तो वासना वहीँ नष्ट हो जावे । श्री श्यामसुन्दर के चरणों से ऊपर का ध्यान विकार चित्त नही कर सकता । समस्त उपाधियाँ वहीँ छूट जाती है , चरण ध्यान की भावना मात्र से । चरण ध्यान समस्त द्वंद से उठी हुई अवस्था है । अर्थात मलिन चित्त भावना भर से शुद्ध हो जाता । ध्यान सहज सरल हुआ तो वह पुनः मलिन न होगा । पुनः मलिन हो रहा अर्थात अनुराग निर्मल नहीँ ,उसमें सूक्ष्म भोग इच्छा है ही । वरन श्री प्रभु चरण में समस्त द्वन्दों की सहज निवृत्ति है । तृषित ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय