उनसे बस एक शिकायत , तृषित
एक भाव 3वर्ष पूर्व लगभग का____
तुमसे बस एक शिकायत है
तुम दर्द को इतना मीठा कर देते हो
वो ज़िन्दगी से प्यारा लगने लगता है
तुमसे बस इतना सा डर है
तुम मेरे इल्म को पढ़ लेते हो
फिर मुझे मैं ही चुभता रहता हूँ
तुमसे बस एक ही प्यास है
तुम प्यार की धरा से बहुत सुंदर खिलते हो
फिर तुमसे मुझे प्यार क्यों नहीँ होता ,
क्यों मै तुमसे दूर रहता हूँ...
तुमसे बस एक ही चाहत थी
हाँ थी , अब कहाँ तुमने वो भी छोड़ी
पता नहीँ था तुम्हें छुना नहीँ इस बार
तुम बहुत कोमल हो ... कितना महकते हो
काश चन्दन से लिपटे नागों सी मदहोशी ही रह जाती
पर तुम केवल चन्दन भी तो नहीँ , कोई शाख भर नहीँ
शहद की मूरत हो , महकती , खिलखिलाती ।
और मैं ... मुझसे तो अभी तो नाग भी डरते है ...
बिच्छू तो हम जूतों में ही कुचल देते है
हम जहाँ निग़ाह करते है डंक से ही बिखरते है
जितने तुम कोमल सरस ...
उतना ही मुझमें विष कुछ तीखा सा भरा
सब कहते है तुम रस हो ...
फिर क्यों मुझमे रस भी उतरा
तो विष सा ही बाहर बहा ...
छुआ होता जो रस तुम्हें तो रस ही रस बहा होता
अब छुना तो नहीँ है ...
तुम्हें ।
अब एक ख़्वाब है ...
क्या तुम्हें पाषाणो की ज़रूरत नहीँ
हो तो कभी , याद करना , करोगे ना ...
तुम भी न...
इतना भी मीठा क्यों हो गए ...???
गर प्यास भी लग जावें तब कहते हम कि
प्यासा ही छोडा हमें
तुमसा तो हुआ ही नहीं जा सकता !
पर जो भी हो कही न कही अब छोड़ भी नहीँ सकता ।
अपना कोई भी कहीं विकल्प मुझे ना देना
तुम नहीँ ,बस अपनी यादों की पूड़ियां में ज़िंदगी की दवा दे देना ।
इतना तो करोगे न । अपनी मीठी यादे तो दोगे न ... हे ...
- तृषित -
स्मृति । स्मरण । भजन ।
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