रस लीला कैसे प्रकट होती , तृषित
Shreea sharma didi : प्यारी सखी जो लिख देती हैं, वह कोई साधारण बात नहीं
सत्यजीत तृषित: उसकी बात उसके लिये जितना रस उतना किसी के लिये नहीँ । क्योंकि वह उसकी सेवा । और हम उस लीला के दर्शक मात्र । वह उसका प्राण । नही होता तो , स्थिति विकट । पर हमें .. वह नहीँ तो कोई और । लीला दर्शन बहुत कोमल स्पर्श है । अति कोमल । इसे एक भी लौकिक स्पंदन बिगाड़ सकता है यह मैंने देख लिया । इसके लिये ऐसे पात्र हो जिन्हें इसे पीने की आतुरता हो ।
फिर यह बहता रहता । क्योंकि स्वार्थ से लीला प्रकट भी नही होती । तत् भाव हो तो सब सहज । आप माँनेगे या नही परन्तु हमें परस्पर झांकियों की प्यास हो ना कि स्व की । परस्पर झाँकी की प्यास हुई तो सहज आपमें रस रहेगा । मैं अपना , कोई अपना सोचे तो नही होगा ।
यह तो समूह । गुप्त रूप भी स्वार्थ हेतु कुछ नहीँ होगा ।
मैंने भाव किया था प्रियाजु को स्वरूप गाँऊ , पर ऐसे सम्भव न था , क्योंकि रस स्वार्थ से होय ही न ।
फिर कृपा से कोई इच्छा किये , यह । बस समझ ग्यो , मिल ग्यो परमिशन । अब उनके सुखार्थ होगा । ममत्व नहीँ तत्सुख प्रकट रहे । मेरे लिये नहीँ होता । उनके या उनके जो उनके लिये ही ।
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