महामाया ... महाकाल , भाव राज्य , तृषित

जीवन कालातीत है ... उसे काल में से ही बाहर देखना है ।

जीवन मायातीत भी है ... उसे माया से छूटा हुआ भी देखना है ।

महाकाल की कृपा की आवश्यकता काल में प्रवेश हेतु नहीँ , कालातीत होने के लिये चाहिये ।

ऐसे ही महामाया की कृपा मायावी होने को नहीँ मायातीत होने को चाहिये ।

भाव राज्य कालातीत और मायातीत है । परन्तु वहाँ काल है जो संहार की ओर नहीँ उत्पत्ति की ओर बहता है ... नित नव भावना अर्थात नित नव स्वरूप । वहाँ स्वरूप नित कोमल होता है क्योंकि काल संहार की ओर नहीँ रस की ओर बह रहा है ।

ऐसे ही माया वहाँ बाधक नहीँ है , योजक है । योगमाया है । ईश्वर से सहज जोड़ देती है ।

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