भक्ति की सीढियां मत नापिये , तृषित
भक्ति की सीढ़ियां ...
सब नापने लगे मैं कहाँ ... ???
काश कोई कहता ! मैं इस पथ पर नहीँ चला । चल सकता ही नहीँ । सत्य में यह पथ ही चलायमान है ।
सीढियों पर आप चढ़ गए ... या चढ़ सकते तो वह कोई प्राकृत सीढियां होगी ।
भक्ति की सीढ़ियां ... प्रकट होती है ... वहाँ अनुभूति प्राप्त करनी हो अपनी स्थिति तो नामाश्रय धारण रखिये ... सीढ़ियों पर ही चलना सिद्धि तो सब पहुँच ही गये है ...
भक्ति नित्य तत्व है ... तत्व भी नहीँ वह तत्व और तत्वातीत की जननी है । भक्ति से पूर्व निष्क्रिय चित्त हो । अर्थात रिक्त मन । सक्रिय सचेतन तो भक्ति है ... भक्ति को स्थूल और स्वयं को चेतन मानने वाले बहुत है ... देखिये ... अपनी सीढ़ी सब सोचने लगे कहां हूँ भक्ति में ।
भक्ति को चेतन मानिये ... भक्ति को जितना चेतन आपका हृदय स्वीकार करेगा , आप उतनी ऊँची सीढ़ी पर हो ... परन्तु यह साधन से प्राप्त है ही नहीँ ... भक्ति साधनातीत है ।
तृषित
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