रिश्ता उनसे , कविता , तृषित
रिश्ता
जब किसी को दिल में सीधा दर्द करना हो उनसे मेरा रिश्ता पूछता है
रिश्ता तो है , वो फूल से महकते
मैं काँटों सी अपनी चुभन छुपाता
रिश्ता तो गहरा सा होता
पर कभी उन्हें दर्द होता नहीँ
कोई घाव उन्हें सताता ही नहीँ
रिश्ता तो था वो मधुशाला थे
मुझे शीशा हो जाना था
उन्हें पी नहीँ सकता था
बस खुद में भर लेना था
पत्थरों की बोतलों का ज़माना अभी नही आया
गुलदस्तों में कुछ काँटों की पनाह का दौर कहां कभी आया
रिश्ता तो है , वो सब कुछ है
मैं कुछ भी नहीँ ...
रिश्ता तो है ... मेरी आँखों में वो आँसूओं से ठहरते नहीँ
रिश्ता तो है ... मैं वो दर्द हूँ जो उन्हें कभी ना हुआ
रिश्ता तो है ... मैं वो प्यास हूँ जो उन्हें कभी ना सताई
रिश्ता तो है ... मैं वो इंतज़ार हूँ जो काश उन्हें कभी ना हो
हक़ीक़त वो तो मै वो ख़्वाब हूँ
जो उनके जहन में उतरता नहीँ
उन्हें तो इश्क़ समझ आता है
ख़्वाबों में वो महकते फूलों में छिपे होते है
और उन बागानों में कहीं कोई काँटे नही होते
हाँ उन्हें इश्क़ दीखता है
और मुझसे इश्क़ ही छिपा सा है
जिस अहसास को वो जीते है
उससे पहले यहाँ सब ख़त्म हो जाता है
रिश्ता तो है ... फूलों से कभी गिरते पत्थर नहीँ देखे हमने
आसानी से सब रिश्ते समझ नहीँ आते ...
मैं एक पानी में डूबा परिंदा हूँ
और वो उड़ते हुए
जहां मीन सी आँखों से देखते
वहीँ पानी ही रह जाता है ...
कुछ रिश्ते समझ नहीँ आते , पर होते तो है ...
-- तृषित --
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