ललिता जु , तृषित
ललित हृदय की अनुपम स्थिति है उनकी , वह प्रिया नहीँ ...पर प्रिया की है ही वहीँ ! उसके हृदय में अपार प्रेम ... दोनों सुकोमल पुष्पों से । प्रिया-लाल की अनुभूतियों को सजीव करने हेतु वह नित्य संगिनी तो हो गई । परन्तु उसके हृदय की अनन्त गहन स्थितियाँ जिन्हें दोनों कुमल प्यारे प्यारी मानते और जानते ... परन्तु दोनों ही जैसे हर लिये गये हो । उसके हृदय के अपार सुख को प्रकाशित करते वें ... उसके अनन्त प्रेम को तृप्त नहीँ कर पाते । लीला रस का सम्पूर्ण सुख उसके हृदय की कोर है , फिर भी वह नित्य सजग ... दोनोँ और का अपार रस खूब प्रकट हो सकें सो वह विवेक की प्रकाशिका सी ... उसके संवाद से गिरती युगल प्रीत में वह कभी अधिक किसी से कुछ कह पाती तो वादिनी स्वरूप वह प्रकट होती ... लीला विलास में उसका अनन्त युगल प्रेम नित्य नव वैभव से उसे प्रियालाल की हृदयस्थ भावना ही बना गया है । सरस् पुष्प और प्यासे भृमर की क्रीड़ा में वह मंद समीरनी ... उसकी करावलियाँ जैसे युगल की अनन्त अपूर्व केलि को पूर्व में ही वीणा के तारों को सुना देती हो । वह युगल सुख अनन्त प्यासी वेदना से नित्य युगल सुखार्थ सेवायत ... लीला हेतु किसी का नित्य सचेत होना आवश्यक है ... अपने भीतर के स्पंदन को वह भले कदापि प्रकट ना करें ... परन्तु श्री प्रिया उसका दायित्व है । वह पलक नहीँ झपका सकती ... श्री प्रिया के रस की रक्षा उसके नेत्रों में प्रेम की प्रकाश बन उमड़ रहे है ... अनन्त सेविकाओं सँग युगल सुखार्थ वह नित्य प्यारे प्यारी के रसानन्द को चेतनामृत करने को व्याकुलित है । कौन है वह ... ??? श्री प्रिया की सेवा या श्यामसुंदर की प्रेमामृत व्यसन को चित्रित कर देने वाली ... ... ... !!!
श्री हरिदास । तृषित । जयजय श्यामाश्याम ।
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