सम्बन्ध से पुकारिये , तृषित
हृदय में नाम को बाहर का उपद्रव कभी नहीँ रोक सकता । उसे हम रोकते है । वही सत्य साधन है , क्यों ? क्योंकि उसे अविराम किया जा सकता है । हृदय में उनके प्रति कह दीजिये कि जब जब हृदय में नाम हो मानना मैंने (सम्बन्ध) पुकारा । देह ने नहीँ । सम्बन्ध से भजिये देह से नहीँ ।
एक युगल पद सेविका मंजरी फँस गई जगत में , उसके लिये विष्टा में धँसने सी पीड़ा यह । यहाँ सारे जीवन में दृश्य कोई होगा क्या जो वह स्थिति समझ सकें । अतः सम्बन्ध पुकारेगा तो सम्बन्ध की वह सुनेंगे ही और सम्बन्ध की पुकार को संसार में तिनका भी नहीँ चाहिये । हाँ जड़ तो जड़ को सत्य मानता जाएगा , मर्सिडीज को कहेगा भगवत कृपा ।
तृषित
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